एफडीआई नीति में संशोधन: केंद्र सरकार ने एफडीआई नीति में संशोधन किया है जिससे भारतीय कंपनियों में पड़ोसी देशों से विदेशी निवेश करना मुश्किल हो जाए. यह निर्णय कोविड -19 संकट से उत्पन्न परिस्थिति को ध्यान में रखकर किया गया है, जिसके तहत भारत के विभिन्न राज्यों द्वारा पड़ोसी देशों से अवसरवादी निवेश को आमंत्रित किया जा सकता है. रिपोर्टों के अनुसार, भारत की एफडीआई नीति में किया गया यह बदलाव कई यूरोपीय देशों द्वारा किए गए ऐसे ही विभिन्न उपायों के अनुरूप है, जिनका उद्देश्य मौजूदा संकट और इसके कारण उत्पन्न बाजार व्यवधान की वजह से चीन से होने वाले विदेशी निवेश को प्रतिबंधित करना है.
एफडीआई नीति के संशोधित नियम केवल उन देशों पर लागू होते हैं जो भारत के पड़ोस में हैं और भारत के सीमावर्ती देश हैं. इसमें चीन के साथ अन्य राष्ट्र जैसे नेपाल, भूटान और म्यांमार शामिल हैं. हमारे वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने आज एक संक्षिप्त प्रेस नोट जारी किया जिसमें नए एफडीआई नियमों में बदलाव की पुष्टि की गई है.
भारत में एफ़डीआई के लिए ये दो माध्यम हैं
वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के दिशानिर्देशों के अनुसार, विदेशी निवेशक दो प्राथमिक तरीकों/ माध्यमों या मार्गों से भारतीय कंपनियों में निवेश कर सकते हैं अर्थात स्वचालित मार्ग, जिसे केंद्र सरकार से किसी भी अनुमोदन की आवश्यकता नहीं होती है और सरकारी मार्ग – अर्थात जिसके तहत विभिन्न फर्मों को पहले मंत्रालय से विदेशी निवेश की अनुमति हासिल करने की आवश्यकता होती है. इससे पहले, कुछ रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्रों को छोड़कर, देश में स्वचालित नियम के माध्यम से एफडीआई की अनुमति थी. हालांकि, अब प्रत्यक्ष विदेशी निवेश नीति में बदलाव के साथ, भारत के सभी पड़ोसी निवेशकों को भारतीय फर्मों में निवेश करने के लिए पूर्व अनुमति लेनी होगी, भले ही वह कोई भी फर्म हो या फिर, किसी भी क्षेत्र से संबंधित कारोबार करती हो.
वर्तमान में, अगर कोई भी विदेशी कंपनी भारत की किसी भी फर्म में एक निश्चित प्रतिशत से अधिक निवेश करना चाहती है तो रक्षा, दूरसंचार और फार्मास्यूटिकल्स सहित ऐसे 17 क्षेत्र हैं जिन्हें सरकार की मंजूरी की आवश्यकता होती है.