पश्चिमी अफ्रीका के आठ देशों ने हाल ही में अपनी साझा मुद्रा (करेंसी) का नाम बदल कर ‘इको’ करने का फैसला किया है. इन देशों ने उपनिवेश काल के शासक फ्रांस से मौजूदा मुद्रा ‘सीएफए फ्रैंक’ को अलग करने का भी फैसला किया है.
ये आठ देश बेनिन, बुर्किना फासो, गिनी-बिसाउ, आईवरी कोस्ट, माली, नाईजर, सेनेगल और टोगो हैं. इन देशों ने फ्रांसीसी औपनिवेशिक काल के अस्तित्व को समाप्त करने का फैसला किया है. गिनी-बिसाउ को छोड़कर ये सभी देश फ्रांस के पूर्व उपनिवेश हैं. यह नई मुद्रा 2020 में प्रचलन में आ जाएगी.
आइवरी कोस्ट के राष्ट्रपति ने कहा है कि मुद्रा का नाम बदलने के बाद इन देशों की मुद्रा के संबंध में फ्रांस का किसी भी तरह का हस्तक्षेप रुक जायेगा. फ्रांस के राष्ट्रपति ने कहा कि उम्मीद है कि पश्चिमी अफ्रीका के ये देश अपनी नई करेंसी के साथ विकास के नए कृतिमान स्थापित करेंगे.
मुख्य बिंदु
- यह घोषणा फ्रांस के राष्ट्रपति एमैनुएल मैक्रों की आइवरी कोस्ट की यात्रा के दौरान की गई.
- आइवरी कोस्ट के राष्ट्रपति एलास्साने ओउत्तारा ने देश की आर्थिक राजधानी आबिदजान में तीन बड़े बदलावों की घोषणा की.
- इन बदलावों में मुद्रा का नाम बदलना, फ्रांस के खजाने में 50 फीसदी से अधिक मुद्रा भंडार रखना तथा मुद्रा के संबंध में किसी भी तरह से फ्रांस का हस्तक्षेप रोकना शामिल रहा.
- फ्रांस के राष्ट्रपति एमैनुएल मैक्रों ने इसे ऐतिहासिक सुधार बताते हुए कहा कि इको की शुरुआत साल 2020 में होगी.
सीएफए फ्रैंक का इतिहास
- सीएफए फ्रैंक शुरुआत में फ्रांस की मुद्रा ‘फ्रैंक’ से जुड़ी हुई थी. बाद में लगभग दो दशक पहले इसे यूरो से जोड़ दिया गया था.
- इस मुद्रा का उपयोग पश्चिमी अफ्रीका के बेनिन, बुर्किना फासो, गिनी-बसाउ, आइवरी कोस्ट, माली, नाइजर, सेनेगल और टोगो अभी कर रहे हैं. इनमें से गिनी-बसाउ को छोड़ शेष सभी देश फ्रांस के उपनिवेश थे.
- सीएफए फ्रैंक करेंसी को साल 1945 से ही इन देशों में उपयोग किया जाता है. यही वजह है कि सीएफए फ्रैंक को इन देशों के आजाद होने के बाद भी पूर्व अफ्रीकी उपनिवेशों में फ्रांस के हस्तक्षेप के रूप में देखा जाता था.