हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार गंगा प्रसाद विमल हाल ही में श्रीलंका में एक सड़क दुर्घटना में निधन हो गया. वे 80 वर्ष के थे. गंगा प्रसाद विमल अपनी बेटी और पोती के साथ यात्रा कर रहे थे जो उसी सड़क दुर्घटना में मारे गए.
गंगा प्रसाद हिंदी के जाने माने लेखक, अनुवादक और जवाहरलाल नेहरू विश्विद्यालय के पूर्व प्रोफेसर थे. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, गंगा प्रसाद विमल अपने परिवार के साथ दक्षिण गेले टाउन से कोलंबो की ओर एक वैन में सवार होकर जा रहे थे.
मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने उनके निधन पर शोक व्यक्त किया. उन्होंने कहा कि गंगा प्रसाद विमल का निधन हिंदी साहित्य की दुनिया के लिए बहुत बड़ी क्षति है और उनके लिए एक व्यक्तिगत क्षति है. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भी विमल के निधन पर शोक व्यक्त किया. उन्होंने कहा कि गंगा प्रसाद विमल के सड़क हादसे में अकस्मात मृत्यु की खबर अत्यंत दु:खद है.
- गंगा प्रसाद विमल का जन्म उत्तराखंड के उत्तरकाशी में साल 1939 में हुआ था.
- वे केंद्रीय हिंदी निदेशालय के निदेशक भी रह चुके थे. वे ओस्मानिया विश्विद्यालय और जेएनयू में शिक्षक भी रहे थे. वे दिल्ली विश्विद्यालय के जाकिर हुसैन कॉलेज से भी जुड़े थे.
- उन्हें हिंदी साहित्य जगत में ‘अकहानी आंदोलन’ के जनक के रूप में जाना जाता था.
- वे पंजाब विश्विद्यालय से साल 1965 में पीएचडी किये थे. वे कवि, कहानीकार, उपन्यासकार और अनुवादक भी थे.
- उन्होंने 12 से अधिक लघु कहानी संग्रह, उपन्यास और कविता संग्रह लिखे हैं.
- उनका पहला काव्य संग्रह साल 1967 में ‘विज्जप’ नाम से आया था. पहला उपन्यास ‘अपने से अलग’ साल 1972 में आया था.
- उनका पहला कहानी संग्रह ‘कोई भी शुरुवात’ साल 1967 में आया था.
गंगा प्रसाद विमल का कार्य
- गंगा प्रसाद विमल ‘चंद्रकुंवर बर्थवाल संचयन’ का संपादन किया था.
- उन्होंने प्रेमचंद तथा मुक्तिबोध पर किताबें लिखी थी. उनकी लगभग 20 से अधिक पुस्तकें छपी थीं.
- उन्हें कई राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी मिले थे. उन्होंने उपन्यास, नाटक, आलोचना भी लिखीं तो कई रचनाओं का संपादन कार्य भी किया.
- उनके प्रसिद्ध कविता संग्रहों में ‘बोधि-वृक्ष’, ‘इतना कुछ’, ‘सन्नाटे से मुठभेड़’, ‘मैं वहाँ हूँ’ एवं ‘कुछ तो है’ आदि हैं.
- उनका अंतिम उपन्यास साल 2013 में प्रकाशित ‘मानुसखोर’ है.
- उनके कहानी संग्रह ‘कोई शुरुआत’, ‘अतीत में कुछ’, ‘इधर-उधर’, ‘बाहर न भीतर’ तथा ‘खोई हुई थाती’ का भी हिंदी साहित्य में अपना स्थान है.