भारत के महान फुटबॉलर पीके बनर्जी का 20 मार्च 2020 को लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया. वे 83 साल के थे. वे लंबे समय से बीमार चल रहे थे तथा कोलकाता के मेडिका अस्पताल में भर्ती थे. वे पिछले कुछ समय से निमोनिया के कारण श्वास की बीमारी से जूझ रहे थे.
पीके बनर्जी भारतीय फुटबॉल का बड़ा सितारा रहे. वे साल 1962 में एशियन गेम्स (Asian Games) की गोल्ड मेडलिस्ट भारतीय टीम का हिस्सा थे. उनके परिवार में उनकी बेटी पाउला और पूर्णा हैं जो नामचीन शिक्षाविद् हैं. उनके छोटा भाई प्रसून बनर्जी तृणमूल कांग्रेस से सांसद हैं.
पुरस्कार-सम्मान
- पीके बनर्जी को साल 1961 में ‘अर्जुन पुरस्कार’ दिया गया था. यह पुरस्कार पाने वाले बनर्जी प्रथम फ़ुटबॉल खिलाड़ी थे.
- उन्हें साल 1990 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.
- उन्हें साल 1990 में ही ‘फीफा फेयर प्ले अवार्ड’ प्रदान किया गया.
- बनर्जी को साल 2005 में ‘फीफा’ की ओर से ‘इण्डियन फुटबॉलर ऑफ ट्वेन्टियथ सेंचुरी’ पुरस्कार प्रदान किया गया.
पीके बनर्जी को कोच का पद
- पीके बनर्जी को रिटायरमेंट के बाद कोच के रूप में फ़ुटबॉल से जुड़े रहे.
- उन्होंने कलकत्ता के मोहन बागान तथा ईस्ट बंगाल क्लब के कोच के रूप में कार्य किया.
- वे लंबे समय तक राष्ट्रीय टीम के भी कोच रहे हैं.
- वे टाटा फ़ुटबॉल अकादमी के टेक्निकल डायरेक्टर भी रहे हैं.
- वे साल 2006 में भारतीय राष्ट्रीय टीम के मैनेजर बने थे.
पीके बनर्जी के बारे में
- पीके बनर्जी का पूरा नाम प्रदीप कुमार बनर्जी था. उनका जन्म 23 जून 1936 को पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी शहर में हुआ था.
- वे भारत के सर्वश्रेष्ठ फ़ुटबॉल खिलाड़ियों में से एक थे. उन्होंने साल 1962 के एशियाई खेलों के फ़ाइनल में भारत की ओर से प्रथम गोल दागा था. भारत ने बाद में इस मैच में स्वर्ण पदक जीता था.
- पीके बनर्जी साल 1960 के रोम ओलंपिक में भारतीय फ़ुटबॉल टीम के कप्तान रहे. वे भारत के प्रथम फ़ुटबॉल खिलाड़ी हैं, जिन्हें साल 1961 में ‘अर्जुन पुरस्कार’ प्रदान किया गया था.
- वे ‘फारवर्ड स्ट्राइकर’ के स्थान पर खेलते थे और टीम के लिए अत्यन्त अहम मौके पर गोल करते रहते थे. पीके बनर्जी के पिता का नाम प्रभात कुमार बनर्जी था.
- उन्होंने अपना खेल कैरियर जमशेदपुर स्पोर्ट्स एसोसिएशन बिहार से आरम्भ किया था. वे साल 1953 में पहली बार आईएफए शील्ड के लिए जमशेदपुर स्पोर्ट्स एसोसिएशन की तरफ से हिन्दुस्तान एयर क्राफ्टस लिमिटेड के विरुद्ध खेले थे.
- उन्होंने साल 1960 में हुए रोम ओलंपिक में भारतीय फ़ुटबॉल टीम का नेतृत्व किया था. वे साल 1961-1962 तथा साल 1966-1967 में रेलवे टीम के सदस्य थे, जिसने ‘संतोष ट्राफी’ जीती थी.