इसरो ने रचा इतिहास, लॉन्च किया कार्टोसैट-3 सैटेलाइट

Isro launches CARTOSAT-3, 13 nano-satellites from

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) 27 नवंबर 2019 को सुबह 9.28 बजे मिलिट्री सैटेलाइट कार्टोसैट-3 को लॉन्च  किया. कार्टोसैट-3 सैटेलाइट को  श्रीहरिकोटा में स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से पीएसएलवी-सी47 के जरिए लॉन्च  किया गया. इसके साथ 13 अमेरिकी सेटेलाइट भी लॉन्च किये गये. इसरो ने 27 नवंबर की सुबह देश की सुरक्षा हेतु एक नया इतिहास रचा है.

यह प्रक्षेपण आंध्र प्रदेश में श्रीहरिकोटा रॉकेट बंदरगाह से 27 नवंबर 2019 को सुबह 9.28 बजे शुरू हुआ. इसे पहले 25 नवंबर 2019 को लॉन्च करने के लिए शेड्यूल किया गया था.कार्टोसैट-3 सैटेलाइट सेना के लिए बेहद मददगार साबित होने वाला है. 

इसरो के मुताबिक 13 अमेरिकी नैनो सैटेलाइट लॉन्च करने की समझौता पर हाल ही में बनाई गई व्यवसायिक शाखा न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड ने की थी. कार्टोसैट-3 को 509 किलोमीटर ऑर्बिट में स्थापित किया जाएगा. छह स्ट्रैपऑन्स के साथ पीएसएलवी की 21वीं उड़ान थी. जबकि, पीएसएलवी की 74वीं उड़ान थी.
 
कार्टोसैट-3 सैटेलाइट के बारे में
 
  • कार्टोसैट-3 एक तीसरी पीढ़ी का फुर्तीला, उन्नत उपग्रह है. इसमें उच्च-रिजॉल्यूशन इमेजिंग क्षमता है.
  • यह सैटेलाइट अंतरिक्ष से भारत की सीमाओं की निगरानी करने में भी सहायता करेगा. साथ ही प्राकृतिक आपदाओं में भी सहायता करेगा.
  • इसे 97.5 डिग्री के झुकाव पर 509 किमी की कक्षा में रखा जाएगा.
  • यह सैटेलाइट उच्च गुणवत्ता वाले फोटो दिलाएगा.
  • यह उपग्रह शहरी नियोजन, ग्रामीण संसाधन और बुनियादी ढांचे के विकास, तटीय भूमि उपयोग और अन्य की मांगों की पूर्ति हेतु तस्वीरें ले सकेगा.
  • इस सेटेलाइट का कैमरा इतना मजबूत है कि वे अंतरिक्ष से जमीन पर 0.25 मीटर अर्थात 9.84 इंच की ऊंचाई तक की स्पष्ट तस्वीरें ले सकता है.

करीब एक मिनट बाद 13 अमेरिकी नैनो सैटेलाइटों में से एक को कक्षा में रखा जाएगा. कार्टोसैट-3 एक पृथ्वी अवलोकन सैटेलाइट है जिसका वजन 1,625 किलोग्राम है. पीएसएलवी रॉकेट के टेकऑफ करने के 26 मिनट और 50 सेकेंड बाद यह अंतिम उपग्रह को उसकी कक्षा में स्थापित करेगा.

पृष्ठभूमि
 
  • 05 मई 2005 को कार्टोसैट सीरीज का पहला सैटेलाइट कार्टोसैट-1 पहली बार लॉन्च किया गया था.
  • 10 जनवरी 2007 को कार्टोसैट-2 को लॉन्च किया गया था.
  • 07 सितंबर 2019 को चंद्रयान-2 के विक्रम लैंडर के साथ संपर्क खो जाने के बाद यह इसरो का पहला प्रक्षेपण है.