केंद्र सरकार ने हाल ही में लेह में राष्ट्रीय सोवा रिग्पा (Sowa-Rigpa) संस्थान की स्थापना को मंज़ूरी प्रदान की है. यह संस्थान केन्द्रीय आयुष मंत्रालय के तहत स्थापित किया जाने वाला एक स्वायत्त संस्थान होगा. यह सोवा रिग्पा प्रणाली का देश में मौजूद सर्वोच्च संस्थान होगा. सरकार का मानना है कि लेह में स्थापित किये जाने वाले इस संस्थान से देश में सोवा-रिग्पा के विकास और अनुसन्धान को प्रोत्साहन प्राप्त होगा. साथ ही सरकार का मानना है कि इस प्रयास द्वारा भारत में सोवा-रिग्पा औषधि पद्धति पुनर्जीवित हो सकेगी.
केंद्र सरकार द्वारा इस संस्थान की स्थापना के लिए 47.25 करोड़ रुपये की लागत का अनुमान लगाया गया है. सोवा-रिग्पा के इस संस्थान द्वारा भारत में इस पद्धति को लोकप्रियता हासिल होगी और विश्व भर के विद्यार्थियों को यहां पढ़ने के अवसर मिलेंगे. भारत व विश्व के जाने-माने संस्थानों के साथ शोध व विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों के मेल को भी बढ़ावा मिलेगा.
सोवा-रिग्पा क्या है?
- “सोवा-रिग्पा” जिसे आमतौर पर अमची चिकित्सा पद्धति के रूप में जाना जाता है, दुनिया की सबसे पुरानी, जीवित और प्रयोग में लाई गई चिकित्सा परंपराओं में से एक है.
- यह तिब्बत, मंगोलिया, भूटान, चीन के कुछ हिस्सों, नेपाल, भारत के हिमालयी क्षेत्रों और पूर्व सोवियत संघ के कुछ हिस्सों आदि में प्रचलित रहा है.
- सोवा-रिग्पा के सिद्धांत और व्यवहार “आयुर्वेद” के समान होते हैं.
- सोवा-रिग्पा सबसे पहले तीसरी शताब्दी ईस्वी के दौरान तिब्बत में आरंभ हुआ था लेकिन यह तिब्बत के बौद्ध धर्म के दृष्टिकोण के साथ 7वीं शताब्दी के बाद ही लोकप्रिय हुआ.
- यह भारत में सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग, हिमाचल प्रदेश और लद्दाख में सदियों से उपयोग में आती रही है.
- इसकी मूल पुस्तक ‘Gyud-Zi’ के लिए कहा जाता है कि इसे खुद गौतम बुद्ध ने लोगों के बीच प्रसारित किया गया था. इसी वजह से इसे बौद्ध दर्शन के भी निकट माना जाता है.
भारत में सोवा-रिग्पा
- भारत में, यह प्रणाली सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, दार्जिलिंग (पश्चिम बंगाल), धर्मशाला, लाहौल और स्पीति (हिमाचल प्रदेश), लद्दाख, जम्मू और कश्मीर में व्यापक रूप से प्रचलित है.
- हाल ही में नई दिल्ली में सोवा-रिग्पा संगठन द्वारा कार्यक्रम आयोजित किया गया था जिसमें इस तिब्बती चिकित्सा (सोवा-रिग्पा) और खगोल-विज्ञान पर व्याख्यान के साथ-साथ चित्र प्रदर्शनी और निःशुल्क स्वास्थ्य परामर्श भी दिया गया.
- इसके अलावा भारत द्वारा यूनेस्को में इस पद्धति पर दावा भी पेश किया गया है, जबकि चीन का दावा है कि यह उसके देश द्वारा अपनाई गई प्राचीन चिकित्सा पद्धति है.