लोकसभा में 25 जुलाई 2019 को ‘तीन तलाक विधेयक’ ध्वनिमत से पारित हो गया है. वोटिंग से पहले ही विधेयक पर मुख्य विपक्षी दल ने सदन से वॉकआउट किया. केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि मामूली बातों पर आज महिलाओं को तलाक दिया जाता है.
विधेयक में एक साथ, अचानक ‘तीन तलाक’ दिए जाने को अपराध करार दिया गया है. इस अपराध में दोषी को जेल की सजा सुनाए जाने का भी प्रावधान किया गया है. कई विपक्षी दलों ने इसका कड़ा विरोध किया है. इस विरोध में सरकार का यह कहना है कि यह विधेयक लैंगिक समानता और न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है.
‘तीन तलाक बिल’ से संबंधित प्रावधान
• इस विधेयक में तीन तलाक को संज्ञेय अपराध मानने का प्रावधान है अर्थात् पुलिस अधिकारी बिना वारंट के गिरफ़्तार कर सकता है.
• विधेयक में तीन तलाक अर्थात् तलाक-ए-बिद्दत को रद्द और गैर कानूनी बनाना है.
• तलाक देने पर तीन साल तक की सजा का प्रावधान है.
• नाबालिग बच्चों को पीड़ित महिल अपने पास रख सकती है. मजिस्ट्रेट इसके बारे में तय करेगा.
• सजा का प्रावधान तभी होगा जब या तो खुद महिला शिकायत करे या फिर उसका कोई सगा-संबंधी.
• इस विधेयक के तहत मजिस्ट्रेट आरोपी को जमानत दे सकता है. मजिस्ट्रेट द्वारा जमानत तभी दी जाएगी, जब पीड़ित महिला का पक्ष सुन लिया जाए और मजिस्ट्रेट को लगे कि जमानत का आधार है.
• मजिस्ट्रेट पीड़ित महिला के अनुरोध पर समझौते की अनुमति दे सकता है.
• विधेयक के तहत पीड़ित महिला पति से गुज़ारा भत्ते का दावा कर सकती है. गुज़ारा भत्ते की राशि मजिस्ट्रेट द्वारा तय की जायेगी.
मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में मई 2019 में इस बिल का मसौदा पेश किया था. इसे लेकर कई विपक्षी दलों ने कड़ी आपत्ति जताई थी. सरकार के पास लोकसभा में तो इस बिल को पास कराने के लिए पार्याप्त संख्या है लेकिन राज्यसभा से इसे पास कराना आसान नहीं होगा.