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अमेरिका ने टॉरपीडो और हारपून मिसाइल की बिक्री को दी मंजूरी

US approves sale of anti-ship missiles, torpedoes to India ...

अमरीका ने भारत को हार्पून ब्लॉक II एयर लॉन्च्ड मिसाइल और टॉरपीडो बेचने के सौदे को मंजूरी दे दी है. इन टॉरपीडो और एंटी-शिप मिसाइलों की कीमत 155 मिलियन डॉलर होगी और इसे P-81 विमानों के साथ एकीकृत किया जाएगा.

भारत को अपनी इस बिक्री के बारे में अमेरिका ने कांग्रेस को सूचित किया है. इससे भारत के विरुद्ध  बढ़ते हुए क्षेत्रीय खतरे के प्रति भारत की निवारक क्षमताओं को बढ़ाने में मदद मिलेगी.

पेंटागन ने अपने बयान में यह कहा है कि, भारत सरकार के अनुरोध के कारण अमेरिकी विभाग ने इस बिक्री को मंजूरी दे दी है. हिंद महासागर और भारत-प्रशांत क्षेत्र में चीन से संभावित खतरों की पृष्ठभूमि में इस मांग को देखा जा सकता है.

उद्देश्य:
 

इस बिक्री से क्षेत्रीय खतरों के खिलाफ भारत की क्षमता बढ़ेगी और इससे भारत को अपनी मातृभूमि सुरक्षित रखने में मदद मिलेगी. इससे भारत को दुश्मन की हथियार प्रणालियों से मौजूदा और भविष्य के खतरों का सामना करने में भी मदद मिलेगी.

हार्पून ब्लॉक II एयर मिसाइल और लाइटवेट टॉरपीडोज़ की कीमत

  • 124 किमी की रेंज वाली 10 AGM-84L हार्पून ब्लॉक II एयर-लॉन्च्ड मिसाइलों की अनुमानित कीमत 92 मिलियन डॉलर है.
  • 16 MK 54 ऑल अप राउंड लाइटवेट टॉरपीडोज़ और तीन अन्य MK 54 एक्सरसाइज टॉरपीडोज़ की अनुमानित कीमत 63 मिलियन डॉलर होगी.
 

पेंटागन के अनुसार, हार्पून मिसाइल प्रणाली को पी – 81 विमान में एकीकृत किया जाएगा और यह  एंटी-सरफेस वॉरफेयर मिशनों का संचालन करेगा.

यह मिसाइल 3.84 मीटर लंबी है और इसकी आक्रमण क्षमता 500 पाउंड है. इसमें एक उच्च विस्फोटक ब्लास्ट वारहेड है जो तटीय रक्षा और सतह से लेकर हवाई मिसाइल हमलों, जल में खड़े हुए जहाजों और औद्योगिक प्रतिष्ठानों को नष्ट कर सकता है.

मिसाइल का निर्माण बोइंग द्वारा किया जाएगा और पी – 81 विमान में इसे एकीकृत किया जाएगा जो बोइंग के पी – 8 का भारतीय रुपांतरण है. इस मल्टी-मिशन पी – 81 विमान को सतह-विरोधी युद्ध, लंबी दूरी की पनडुब्बी-रोधी युद्ध, निगरानी और खुफिया तंत्र और टोही मिशन के लिए बनाया गया है.

भारत और अमेरिका के बीच रणनीतिक साझेदारी:
 

पेंटागन के इस बयान के अनुसार, यह बिक्री अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति का समर्थन करेगी. इससे अमेरिका और भारत के आपसी रणनीतिक संबंध काफी मजबूत होंगे और एक प्रमुख साझेदार के तौर पर भारत की सुरक्षा व्यवस्था में सुधार होगा.

अमेरिका के अनुसार दक्षिण एशियाई क्षेत्र और भारत-प्रशांत क्षेत्र में शांति, राजनीतिक स्थिरता, आर्थिक प्रगति के लिए भारत एक महत्त्वपूर्ण शक्ति है.

पृष्ठभूमि:

हमारा पड़ोसी देश चीन अपने दक्षिणी और पूर्वी चीन सागर में क्षेत्रीय विवाद बढ़ा रहा है. बीजिंग ने अपने मानव निर्मित द्वीपों के सैन्यीकरण को भी बढ़ा दिया है और यह कहा है कि उसे अपने देश के बचाव का पूर्ण अधिकार है.

दक्षिणी चीन सागर के समस्त क्षेत्र पर चीनी संप्रभुता के दावे के ख़िलाफ़ वियतनाम, फिलीपींस, मलेशिया, ताइवान, और ब्रुनेई ने अपनी संप्रभुता का दावा किया है. जबकि पूर्वी चीन सागर में, चीन का जापान के साथ क्षेत्रीय विवाद है.

यह पूर्वी चीन सागर और दक्षिणी चीन सागर का क्षेत्र तेल, खनिज और अन्य प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध होने के कारण विभिन्न निकटवर्ती देशों के बीच व्यापक विवादों का एक कारण है.

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